कांग्रेस का आरोप है कि विधानसभा स्पीकर की भूमिका संदिग्ध है और वे विधायक को बचाने के लिए राज्यपाल से माफी मंगवाने का षड्यंत्र रच रहे हैं।
भारतीय संविधान की धारा 191 और विधानसभा नियमों के तहत यदि कोई विधायक किसी आपराधिक मामले में दोषी पाया जाता है तो उसकी सदस्यता खत्म हो सकती है। इसके अलावा, विधानसभा के अंदर अनुशासनहीनता या गैरकानूनी कृत्यों की सूरत में भी विधायक को अयोग्य घोषित किया जा सकता है।
राज्यपाल के पास विधायक को अयोग्यता से बचाने के लिए माफी देने का अधिकार होता है, जोकि संवैधानिक शक्तियों के अंतर्गत आता है। लेकिन यह माफी केवल विशेष परिस्थितियों में दी जाती है और इसके लिए नियम और प्रक्रिया निर्धारित हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार, यदि विधायक ने कानून तोड़ा हो और दोष सिद्ध हो चुका हो, तो माफी आसानी से नहीं मिलती। इसके लिए एक विस्तृत जांच प्रक्रिया और विधानसभा स्पीकर की सिफारिश जरूरी होती है।
कांग्रेस का आरोप है कि भाजपा के विधायकों को बचाने के लिए स्पीकर और राज्यपाल के बीच मिलीभगत हो रही है, जिससे लोकतंत्र और संविधान के मूल सिद्धांतों पर प्रश्नचिन्ह लग रहा है।
कांग्रेस नेता कह रहे हैं,
“जब विधायक ने SDM पर पिस्तौल तानी, तो ऐसे व्यक्ति को विधान सभा में बने रहने देना उचित नहीं। माफी के जरिए उनकी सदस्यता बचाना संवैधानिक रूप से गलत होगा।”
राजनीतिक और संवैधानिक विशेषज्ञ डॉ. संदीप शर्मा कहते हैं,
“राज्यपाल की माफी का प्रयोग अक्सर विवादित होता है। यह एक संवैधानिक अधिकार है, लेकिन इसका दुरुपयोग लोकतंत्र के लिए खतरनाक है। विधायक की अयोग्यता का फैसला विधायिका का अधिकार है, न कि माफी से इसे टाला जा सके।”
कंवरलाल मीणा के मामले ने राजस्थान की राजनीति में नए सिरे से उथल-पुथल मचा दी है। माफी की प्रक्रिया, स्पीकर की भूमिका और राज्यपाल की शक्ति को लेकर चल रही बहस का असर विधानसभा के निर्णयों और राजनीतिक स्थिरता पर पड़ सकता है।
आने वाले दिनों में इस मामले में कोर्ट और विधानसभा की भूमिका निर्णायक होगी।
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