नई दिल्ली: “उस दिन के बाद मेरी ज़िंदगी बदल गई...” ये शब्द उस युवती के हैं जिसने बचपन में अपने ही रिश्तेदार – चाचा – द्वारा किए गए यौन शोषण की सच्चाई को समाज के सामने लाने का हौसला दिखाया है।
वह बताती है कि कैसे एक ब्लैकबोर्ड की आड़ में उसके साथ बार-बार गंदी हरकतें की जाती थीं। उसे मोबाइल फोन का लालच दिया जाता, ताकि वह विरोध न करे।
"वो कहते थे, ये तुम्हारा राज है। अगर किसी को बताया तो मम्मी-पापा को नुकसान होगा..."
यह कहानी सिर्फ एक लड़की की नहीं, बल्कि उन लाखों मासूमों की है जो अपने ही घर या जान-पहचान वालों से यौन शोषण का शिकार होते हैं।
पीड़िता ने बताया –
“वो मेरे प्राइवेट पार्ट्स को छूते थे, मुझे समझ नहीं आता था कि ये क्या हो रहा है। बाद में जब समझ आया तो घिन सी महसूस हुई।”
अब वह युवती 20 साल की हो चुकी है, लेकिन कहती है –
“आज भी कोई लड़का छू ले, तो झटका सा लगता है। हर मर्द में वही डर दिखता है। मैं नॉर्मल रिश्ते भी नहीं बना पाई।”
इस तरह के यौन शोषण के शिकार बच्चों को लंबे समय तक मानसिक, भावनात्मक और सामाजिक असर झेलना पड़ता है।
पीड़िता का आरोप है कि परिवार में किसी को बताने की कोशिश की, लेकिन कहा गया –
“ऐसे मामले घर की इज्जत को खराब करते हैं, चुप रहो।”
यह वही चुप्पी है जो अपराधियों को और ताकतवर बना देती है।
भारत में POCSO एक्ट (2012) के तहत बच्चों के साथ यौन अपराध गंभीर अपराध है और इसके लिए कठोर सजा का प्रावधान है।
लेकिन अक्सर रिपोर्टिंग न होने की वजह से अपराधी खुले घूमते हैं।
मनोचिकित्सक डॉक्टर पूजा वर्मा के अनुसार:
“बचपन में हुई ऐसी घटनाएं पीड़ित की संपूर्ण पर्सनैलिटी को प्रभावित करती हैं। इन्हें काउंसलिंग और फैमिली सपोर्ट की सख्त जरूरत होती है।”
यह कहानी सिर्फ दर्द नहीं, जागरूकता का प्रतीक है। ऐसे मामले तभी रुकेंगे जब परिवार, स्कूल और समाज मिलकर बच्चों को बोलने, समझने और सुरक्षित महसूस कराने का माहौल देंगे।
यदि आपके आसपास कोई बच्चा असहज महसूस कर रहा हो, या व्यवहार में अचानक बदलाव हो – उसे नजरअंदाज न करें। तुरंत उसकी मदद करें।
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