जयपुर। राजस्थान हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में महिला कर्मचारी अनिता स्वामी को बड़ी राहत दी है। कोर्ट ने सरकारी विभाग द्वारा नियुक्ति निरस्त करने के आदेश पर अंतरिम रोक लगाते हुए विभाग को पुनः कार्यग्रहण करवाने के निर्देश दिए हैं।
इस केस की सुनवाई हाईकोर्ट की जस्टिस सुदेश बंसल की एकल पीठ द्वारा की गई, जिसमें यह स्पष्ट किया गया कि याचिकाकर्ता ने महज दो महीने पहले ही सेवा जॉइन की थी, ऐसे में नियुक्ति को बिना समुचित कारण निरस्त करना प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है।
अनिता स्वामी को हाल ही में एक सरकारी विभाग में नियुक्त किया गया था। उन्होंने दो महीने पहले ही पद ग्रहण किया था, लेकिन किसी प्रशासनिक कारण से विभाग ने उनका नियुक्ति आदेश निरस्त कर दिया।
इस आदेश को अनिता स्वामी ने हाईकोर्ट में चुनौती देते हुए याचिका दाखिल की, जिसमें उन्होंने दलील दी कि उन्हें बिना नोटिस, जांच या स्पष्टीकरण का अवसर दिए नौकरी से हटा दिया गया, जो संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और 16 (सरकारी नौकरियों में समान अवसर) का उल्लंघन है।
हाईकोर्ट ने प्रारंभिक सुनवाई के बाद माना कि याचिकाकर्ता को न्याय दिलाना आवश्यक है और कहा:
"नियुक्ति को निरस्त करने का निर्णय असंवैधानिक प्रतीत होता है। विभाग को निर्देशित किया जाता है कि अनिता स्वामी को तत्काल पुनः कार्यग्रहण कराया जाए, जब तक अंतिम निर्णय नहीं आ जाता।"
याचिकाकर्ता को बिना स्पष्टीकरण सेवा से हटाया गया था।
हाईकोर्ट ने इसे प्राकृतिक न्याय के विरुद्ध माना।
कोर्ट ने पुनः कार्यग्रहण का स्पष्ट निर्देश दिया है।
अंतिम निर्णय तक नियुक्ति बनी रहेगी।
यह फैसला उन तमाम सरकारी कर्मचारियों और अभ्यर्थियों के लिए नजीर है, जो बिना उचित प्रक्रिया के सेवा से हटाए जाते हैं। कोर्ट का यह आदेश बताता है कि प्रशासनिक मनमानी के खिलाफ न्यायपालिका एक मजबूत स्तंभ के रूप में खड़ी है।
राजस्थान हाईकोर्ट का यह आदेश न केवल अनिता स्वामी के लिए न्याय है, बल्कि यह नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शिता और अधिकारों की सुरक्षा को भी सुदृढ़ करता है। यह मामला आने वाले दिनों में अन्य समान प्रकरणों पर भी असर डाल सकता है।
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