नई दिल्ली: भारत की स्वदेशी रक्षा तकनीक को एक और बड़ी सफलता मिली है। डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन (DRDO) द्वारा विकसित ‘कावेरी जेट इंजन’ की फ्लाइंग टेस्टिंग रूस में शुरू हो चुकी है। यह परीक्षण रियल फ्लाइट कंडीशन में किया जा रहा है, जिससे इंजन की असली क्षमता को परखा जा सके।
कावेरी इंजन को खासतौर पर लंबी दूरी तक उड़ने वाले स्टेल्थ ड्रोन और हल्के लड़ाकू विमानों के लिए डिजाइन किया गया है। रक्षा सूत्रों के अनुसार, DRDO इस इंजन को भविष्य में LUH (Light Utility Helicopter) और LCA तेजस जैसे प्लेटफॉर्म्स पर भी लागू करने की योजना बना रहा है।
रूस के पास ऐसे एयरबोर्न प्लेटफॉर्म उपलब्ध हैं, जिन पर इंजनों को फ्लाइट के दौरान परखा जा सकता है। भारत में फिलहाल ऐसी टेस्टिंग के लिए पूर्ण सक्षम प्लेटफॉर्म उपलब्ध नहीं हैं, इसलिए DRDO ने रूस के साथ समझौता करके यह उड़ान परीक्षण शुरू किया है।
थ्रस्ट: करीब 52 kN (non-afterburner)
डिजाइन: स्वदेशी गैस टर्बाइन टेक्नोलॉजी
उपयोग: ड्रोन्स, फाइटर जेट्स, भविष्य के UCAV (Unmanned Combat Aerial Vehicle)
DRDO अब कावेरी इंजन के अपग्रेड वर्जन ‘कावेरी 2.0’ पर भी काम कर रहा है, जिसमें लगभग 90 kN तक की थ्रस्ट क्षमता देने का लक्ष्य है। यह वर्जन भारत के भविष्य के मल्टीरोल फाइटर प्रोग्राम्स जैसे AMCA (Advanced Medium Combat Aircraft) में इस्तेमाल किया जा सकता है।
‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान के तहत यह उपलब्धि रक्षा क्षेत्र में भारत को तकनीकी रूप से आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। कावेरी जैसे इंजन भविष्य में भारत को विदेशी जेट इंजन पर निर्भरता कम करने में मदद करेंगे।
भारत का कावेरी इंजन अब केवल लैब की टेस्टिंग से आगे बढ़कर रियल फ्लाइट ट्रायल तक पहुंच चुका है। रूस में चल रही यह टेस्टिंग न सिर्फ DRDO के आत्मविश्वास को बढ़ा रही है, बल्कि भारत की वैश्विक रक्षा पहचान को भी मजबूत कर रही है। आने वाले समय में यह इंजन भारतीय वायुसेना की रीढ़ बन सकता है।
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