राज्यपाल: हरिभाऊ बागडे ने वर्षा जल संचयन और पर्यावरण संरक्षण को लेकर एक प्रभावशाली संदेश दिया है। उन्होंने कहा, "आकाश से जो पानी गिरे, उसे बहने न दें। वहीं रोकें। तभी जल संरक्षण संभव होगा।" यह बात उन्होंने जलयुक्त गांव बनाने और पर्यावरण को बचाने के प्रयासों के संदर्भ में कही।
राज्यपाल ने महाराष्ट्र के जल संरक्षण मॉडल की सराहना करते हुए कहा कि वहां के ग्रामीणों ने वर्षा जल को रोकने के लिए अनुकरणीय प्रयास किए हैं, जिससे भूमिगत जल स्तर में सुधार हुआ है।
राज्यपाल बागडे ने जल संरक्षण के साथ-साथ वृक्षारोपण पर भी ज़ोर दिया। उन्होंने कहा, "बरगद और पीपल जैसे पेड़ दिन-रात ऑक्सीजन देते हैं, इन्हें लगाएं।" ऐसे वृक्ष न केवल वातावरण को शुद्ध करते हैं, बल्कि स्थानीय जलवायु को संतुलित रखने में भी अहम भूमिका निभाते हैं।
“सिर्फ पौधे नहीं, पर्यावरण के प्रहरी बनाएं। एक-एक पेड़ जीवनदायी साबित होता है,” — हरिभाऊ बागडे, राज्यपाल
राज्यपाल ने बताया कि यदि हर गांव वर्षा जल संचयन को गंभीरता से अपनाए, तो वह जलयुक्त बन सकता है। ऐसे गांवों में सूखा, जल संकट और खेती की समस्याएं काफी हद तक दूर हो सकती हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि जल संरक्षण को केवल सरकारी योजना नहीं, जन आंदोलन बनाया जाए। समुदाय स्तर पर छोटे-छोटे प्रयास जैसे पानी की टंकियां, चेक डैम, कुएं और तालाब पुनर्जीवन जैसे कदम उठाए जाएं।
राज्यपाल ने स्कूली शिक्षा और सामुदायिक प्रशिक्षण के माध्यम से जल और पर्यावरण संरक्षण की शिक्षा देने पर बल दिया। उनका मानना है कि जब बच्चे और युवा पीढ़ी जल और हरियाली के महत्व को समझेगी, तभी सच्चा परिवर्तन संभव होगा।
"पानी की एक-एक बूंद अनमोल है। आज नहीं समझे तो कल जीवन के लिए तरसेंगे।"
राज्यपाल हरिभाऊ बागडे का यह संदेश केवल एक अपील नहीं, बल्कि जल संकट से जूझ रहे भारत के लिए चेतावनी भी है। यदि हम आज वर्षा जल को रोकने, हरियाली बढ़ाने, और समाज को जोड़ने जैसे प्रयास नहीं करते, तो आने वाली पीढ़ियों के लिए हालात और भयावह हो सकते हैं।
उनकी बातों से साफ है कि सिर्फ योजनाएं बनाना काफी नहीं, धरातल पर क्रियान्वयन और जनसहभागिता जरूरी है। यह अभियान सिर्फ सरकार का नहीं, हर नागरिक की जिम्मेदारी है।
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