कैब चालकों ने कहा कि ओला-उबर जैसी कंपनियों ने उन्हें "स्वरोजगार" का सपना दिखाया था, लेकिन आज स्थिति गुलामी जैसी हो गई है। ड्राइवरों को 15-16 घंटे की ड्यूटी करने के बाद भी खर्च निकालना मुश्किल हो रहा है, क्योंकि कंपनियां अधिक कमीशन काट रही हैं और किराया लगातार घटाया जा रहा है।
संगठन के पदाधिकारियों ने कहा कि यदि उनकी मुख्य मांगे—
किराया दरों में बढ़ोतरी
कमीशन की अधिकतम सीमा निर्धारित
ड्राइवरों को बीमा व सामाजिक सुरक्षा
असली समय आधारित इंसेंटिव
—पूरी नहीं की गईं, तो वे पूरे जयपुर में चक्का जाम करेंगे। उन्होंने कहा कि यह सिर्फ जयपुर नहीं, बल्कि राज्यव्यापी आंदोलन में बदल सकता है।
प्रेस कॉन्फ्रेंस में एक ड्राइवर ने कहा, “हमारी मेहनत से कंपनियां अरबों कमा रही हैं, लेकिन हमें न सम्मान मिल रहा है, न आय की स्थिरता। हर दिन नए चार्ज, पेनाल्टी और नियम लागू कर दिए जाते हैं।”
समस्त सारथी संगठन ने राज्य सरकार और परिवहन विभाग से मांग की है कि वे इस मामले में सीधा हस्तक्षेप करें और कैब चालकों को राहत दिलाएं। संगठन का कहना है कि यदि प्रशासन ने इस आंदोलन को गंभीरता से नहीं लिया, तो यह मामला कानून-व्यवस्था की समस्या बन सकता है।
जयपुर में कैब चालकों का विरोध अब सामाजिक आंदोलन का रूप ले रहा है, और यदि जल्द ही उनकी समस्याओं पर ठोस निर्णय नहीं लिया गया तो राजधानी की यातायात व्यवस्था पर बड़ा असर पड़ सकता है।
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