यह प्रणाली टोकन सिस्टम के माध्यम से मरीजों की लाइन और वेटिंग प्रक्रिया को ऑटोमेटिक रूप से नियंत्रित करती है।
मरीजों को अस्पताल में रजिस्ट्रेशन के समय एक टोकन नंबर दिया जाता है।
टोकन स्क्रीन पर डॉक्टर की उपलब्धता और मरीज का नंबर दिखाई देता है।
इससे भीड़ कम होती है, अव्यवस्था घटती है और मरीजों को पारदर्शिता का अनुभव होता है।
स्वास्थ्य विभाग के वरिष्ठ सचिव ने शनिवार को जयपुरिया हॉस्पिटल का दौरा कर नए क्यू सिस्टम की कार्यप्रणाली का जायजा लिया।
उन्होंने डॉक्टरों, मरीजों और पैरामेडिकल स्टाफ से बातचीत कर फीडबैक लिया।
कई मरीजों ने कहा कि अब इंतजार की स्थिति स्पष्ट है और परेशानी कम हुई है।
डॉक्टरों ने भी व्यवस्था को सकारात्मक बताया, लेकिन साथ में एक बड़ी कमी की ओर ध्यान दिलाया।
डॉक्टरों ने बताया कि हालांकि क्यू सिस्टम प्रभावी है, लेकिन जब मरीजों को किसी विशेषज्ञ के पास रेफर किया जाता है, तब कोई निर्धारित सिस्टम नहीं है।
मरीजों को फिर से लाइन में लगना पड़ता है।
इससे फॉलोअप या विशेष जांच की प्रक्रिया जटिल हो जाती है।
डॉक्टरों की मांग है कि रेफरेंस मैनेजमेंट सिस्टम को भी इसमें जोड़ा जाए, जिससे टोकन प्रक्रिया अगले डॉक्टर के लिए ऑटोमैटिकली ट्रांसफर हो जाए।
स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी ने बताया कि यदि पायलट प्रोजेक्ट सफल रहता है, तो इसे अन्य जिला अस्पतालों में भी लागू किया जाएगा।
डिजिटल हेल्थ ट्रैकिंग, समयबद्ध जांच और पेपरलेस रजिस्ट्रेशन जैसे इनोवेशन भी आने वाले समय में क्यू सिस्टम से जोड़े जाएंगे।
रेखा देवी, 45 वर्ष: “पहले लाइन में घंटों खड़ी रहना पड़ता था, अब आराम से नंबर आता है।”
शिवराज सिंह, 62 वर्ष: “रेफर होने के बाद फिर से लाइन में लगना खटकता है, सुधार जरूरी है।”
सरोज मीणा, नर्सिंग स्टाफ: “मरीज कम परेशान हैं, हमें भी प्रेशर थोड़ा कम लगता है।”
जयपुरिया हॉस्पिटल में क्यू मैनेजमेंट सिस्टम की शुरुआत, सरकारी अस्पतालों में डिजिटल बदलाव और व्यवस्थागत सुधार की दिशा में अहम कदम है।
हालांकि, रेफरेंस और इंटीग्रेटेड मैनेजमेंट सिस्टम जोड़ने की ज़रूरत अब भी महसूस की जा रही है।
अगर यह सिस्टम और बेहतर बनाया गया, तो यह समूचे राजस्थान के लिए हेल्थकेयर का रोल मॉडल बन सकता है।
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